भ्रष्टाचार पर ही कर डाली पीएचडी

प्रदेश के उच्च शिक्षण संस्थाओं और प्रशासनिक कार्यालयों में फैले भ्रष्टाचार को केंद्र में रखकर की गई इस रिसर्च में भ्रष्टाचार के कारणों, जिम्मेदारों और समाधान जैसे विषय पर विस्तृत जानकारी दी गई है। छोटी सी ग्राम पंचायत से सीएम तक को भ्रष्टाचार के मामलों में कठघरे में लाने वाले इस शोध पत्र की शुरुआत चाणक्य के कथन ‘तालाब की मछली कब पानी पी जाती है, किसी को पता नहीं चलता’ से होती है।
लोक प्रशासन के मेधावी छात्र रहे डॉ. धरणोंद्र के शोध पत्र में लोगों के बीच किए गए सर्वे में शामिल सभी लोगों ने माना कि देश में चारों तरफ भ्रष्टाचार है।
सिस्टम के सामने हर कोई बेबस
मजेदार तथ्य यह है कि सर्वे में शामिल प्रशासनिक अधिकारी भी मानते हैं कि उनके विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है। वह खुद को बेबस मानते हैं। सिस्टम के द्वारा, सिस्टम के लिए और सिस्टम से कार्य करने को अपनी नियति बना लेते हैं तो घूस देने वाला आम व्यक्ति भी अपनी सुविधा के लिए इस सिस्टम को अनुकरण करता नजर आता है।
सीएम तक पहुंचता है कमीशन
शोध पत्र में चुनाव प्रक्रिया से सीएम तक निर्माण कार्य और खरीदी प्रक्रिया के बारे में कहा गया है कि विभाग के जूनियर इंजीनियर, उपमंडल अधिकारी, कार्य पालन, अधीक्षण तथा मुख्य अभियंता सभी का कमीशन बंधा हुआ है। फिर यह कमीशन आगे बढ़ता हुआ उपसचिव, सचिव, मंत्री से होता हुआ मुख्यमंत्री तक पहुंचता है। विधायक और सांसद अपनी निधि से विकास कार्यों को एक निर्धारित कमीशन पर करवाते हैं।
गौरतलब है कि देश में इन दिनों भ्रष्टाचार को लेकर आमलोगों में असंतोष व्याप्त है। राजनीतिक और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण लोगों में हताशा की स्थिति है, ऐसे में भ्रष्टाचार में ही पीएचडी कर लेना अपने आप में एक अनोखी बात है। हालांकि, विभिन्न स्तरों पर इससे निपटने की जंग अभी जारी है।