कहानी : मन नहीं लगता… क्या करें
एक सेठ के पास एक नौकर गया। सेठ ने पूछा: रोज के कितने रुपये लेते हो? नौकर: बाबू जी ! वैसे तो आठ रूपये लेता हूँ। फिर आप जो दे दें। सेठ: ठीक है, आठ रुपये दूँगा। अभी तो बैठो। फिर जो काम होगा, वह बताऊँगा। सेठ जी किसी दूसरे काम में लग गये।
उस नये नौकर को काम बताने का मौका नहीं मिल पाया। जब शाम हुई तब नौकर ने कहा: सेठ जी! लाइये मेरी मजदूरी। सेठ: मैंने काम तो कुछ दिया ही नहीं, फिर मजदूरी किस बात की? नौकर: बाबू जी ! आपने भले ही कोई काम नहीं बताया किन्तु मैं बैठा तो आपके लिए ही रहा। सेठ ने उसे पैसे दे दिये। जब साधारण मनुष्य के लिए खाली-खाली बैठे रहने पर भी वह मजदूरी दे देता है तो परमात्मा के लिए खाली बैठे भी रहोगे तो वह भी तुम्हें दे ही देगा। मन नहीं लगता…. क्या करें? नहीं, मन नहीं लगे तब भी बैठकर जप करो, स्मरण करो। बैठोगे तो उसके लिए ही न? फिर वह स्वयं ही चिंता करेगा।