राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को करारा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाला मामले की सुनवाई कर रहे निचली अदालत के जज के स्थान पर किसी दूसरे जज से सुनवाई कराने की उनकी अर्जी को मंगलवार को खारिज कर दिया और अदालत से यथाशीघ्र अपना फैसला सुनाने को कहा।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी सदाशिवम के नेतृत्व वाली पीठ ने राजद प्रमुख के इस आरोप को खारिज कर दिया कि मामले की सुनवाई कर रहे जज नीतीश कुमार सरकार के एक मंत्री के रिश्तेदार हैं इसलिए उनका उनके (लालू के) प्रति पूर्वाग्रह है। पीठ ने सुनवाई के इस लगभग अंतिम चरण में यह मुद्दा उठाने के लालू प्रसाद के कदम पर भी सवाल उठाया। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने समय सीमा तय करते हुए सुनवाई को पूरा करने के लिए सीबीआई को पांच दिन का समय दिया और आरोपी पक्ष को मामले में अपनी अंतिम दलीलें पूरी करने के लिए 15 दिन का समय दिया। न्यायमूर्ति रंजना देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई भी इस पीठ में सदस्य हैं। पीठ ने कहा कि वह एक जज के खिलाफ लगाए जा रहे आरोपों को सुनने के इच्छुक नहीं हैं और इसके साथ ही उसने निचली अदालत की सुनवाई पर लगाए स्थगनादेश को भी हटा दिया। हालांकि, इससे पहले पीठ एक तरह से जज को हटाने के लिए सहमत होती प्रतीत हुई थी और उसने सीबीआई और लालू प्रसाद के वकील से मामले की आगे की सुनवाई के लिए एक वैकल्पिक जज का नाम सुझाने को भी कह दिया था। शीर्ष न्यायालय ने गत 23 जुलाई को कहा था कि वह या तो हाईकोर्ट को एक नए जज की नियुक्ति करने का निर्देश देने वाला आदेश देगा या, वह खुद ऐसा करेगा बशर्ते कि दोनों पक्ष मामले की सुनवाई के लिए किसी एक जज के नाम पर सहमत हो जाएं। उसने दोनों पक्षों से यह भी कहा था कि वे 6 अगस्त तक उस जज के नाम पर सहमति बना लें जिसे मामले की सुनवाई का काम सौंपा जाना है। हालांकि, अगली सुनवाई की तिथि को न्यायालय ने जदयू नेता राजीव रंजन के इस संबंध में व्यक्त भारी विरोध को देखते हुए कोई भी आदेश नहीं दिया। राजीव रंजन ने कहा था कि ऐसे समय जब सुनवाई लगभग खत्म हो रही है, मामला किसी दूसरे जज को सौंपा जाता है तो यह न्याय के साथ खिलवाड़  होगा। गौरतलब है कि रंजन की याचिका पर ही झारखंड हाईकोर्ट चारा घोटाला मामले की जांच की निगरानी कर रहा है। रंजन ने दलील दी थी कि अगर इस स्तर पर किसी दूसरे जज को मामला सौंपा जाता है तो इसका पूरे देश में गलत असर पड़ेगा। सन 2011 से जारी सुनवाई के लगभग अंत में अब जज बदलने की लालू प्रसाद की अर्जी पर भी उन्होंने सवाल उठाया। यह मामला 1990 में चाईबासा खजाने से 37.7 करोड़ रुपये कथित तौर पर फर्जी तरीके से निकाले जाने का है। इस संबंध में एफआईआर बिहार सरकार ने फरवरी 1996 में दर्ज कराई और एक महीने बाद मामला सीबीआई को जांच के लिए सौंप दिया गया। सीबीआई ने करीब एक साल तक मामले की जांच की और 1997 में आरोप पत्र दाखिल किया। सन 2000 में इस मामले में आरोप तय किए गए जिसके बाद विशेष सीबीआई अदालत ने लालू प्रसाद और 44 अन्य आरोपियों के खिलाफ सुनवाई शुरू की। चारा घोटाला मामले की सुनवाई किसी दूसरे जज को सौंपने के लालू के आवेदन को झारखंड हाईकोर्ट द्वारा गत एक जुलाई को खारिज किए जाने के बाद लालू प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।