जल्द ही उड़ीसा में दहाड़ेंगे मध्यप्रदेश के बाघ
By dsp bpl On 10 Feb, 2018 At 04:07 PM | Categorized As मध्यप्रदेश | With 0 Comments

सतकोसिया टाइगर रिजर्व जाएंगे प्रदेश से बाघों के तीन जोड़े

bandhavgarh-tigerभोपाल । सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही मध्यप्रदेश के बाघों की दहाड़ उड़ीसा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व में भी सुनाई देगी। एनटीसीए की सहमति के बाद अब मध्यप्रदेश सरकार ने भी प्रदेश से तीन जोड़ी बाघ उड़ीसा भेजे जाने पर सहमति दे दी है। इसके साथ ही प्रदेश का वन्य प्राणी संरक्षण महकमा उड़ीसा को बाघों के संरक्षण एवं प्रबंधन के लिए उचित सहयोग भी प्रदान करेगा। अब जल्द ही मध्यप्रदेश और उड़ीसा के अधिकारी बाघों के विस्थापन की रूपरेखा तैयार करेंगे।

बाघों के अनुकूल वातावरण होने के बावजूद उड़ीसा में बाघों की संख्या लगातार कम हो रही है। 2016 की गणना के मुताबिक वहां पर सिर्फ 40 बाघ ही बचे थे। बाघों की लगातार कम होती संख्या से चिंतित उड़ीसा वन्य प्राणी संरक्षण विभाग ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) से अन्य राज्यों से बाघों के विस्थापन का अनुरोध किया था। विस्थापन के इस प्रस्ताव के परीक्षण के बाद एनटीसीए की तकनीकी समिति ने सहमति जताई है। इसके बाद मध्यप्रदेश शासन ने भी इस प्रस्ताव पर सहमति दे दी है और इस संबंध में शासन की ओर से शुक्रवार को पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ को पत्र भी भेज दिया गया है। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) कार्यालय के जनसंपर्क प्रभारी रजनीश के. सिंह के अनुसार 15-20 दिनों में उड़ीसा के अधिकारियों की एक टीम भोपाल आएगी। उनसे चर्चा करके बाघों के विस्थापन की योजना तैयार की जाएगी।

सतकोसिया टाइगर रिजर्व होगा बाघों का नया घर: मध्यप्रदेश के बाघों के तीन जोड़ों को उड़ीसा के सतकोसिया टाइगर रिजर्व भेजा जाएगा। यह महानदी के आसपास के क्षेत्र में 963.87 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला है। इसे 1976 में वन्यजीव अभ्यारण्य का दर्जा मिला। इसके बाद सतकोसिया अभ्यारण्य और बैसीपल्ली अभ्यारण्य को मिलाकर 2007 में सतकोसिया टाइगर रिजर्व बनाया गया। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होते हुए भी यहां बाघों की संख्या कम होती गई और 2016 की गणना के अनुसार यहां सिर्फ दो ही बाघ बचे हैं। इसीलिए मध्यप्रदेश के बाघों को बसाने के लिए सतकोसिया का चुनाव किया गया है।

मध्यप्रदेश ही क्यूं?: बाघों की आबादी देश के अन्य राज्यों भी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि उड़ीसा को बाघ देने के लिए मध्यप्रदेश का ही चयन क्यूं किया गया है, जबकि गत वर्ष से अभी तक प्रदेश में 27 बाघों की मौत हो चुकी है। इस बारे में पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) कार्यालय के जनसंपर्क प्रभारी रजनीश के. सिंह कहते हैं कि बाघों के विस्थापन के लिए मध्यप्रदेश को चुने जाने की सबसे बड़ी वजह इस मामले में मध्यप्रदेश की विशेषज्ञता होना है। मध्यप्रदेश में कई बार बाघों का सफलतापूर्वक विस्थापन किया जा चुका है और प्रदेश के अधिकारी इसके लिए बाघों को ट्रेंकुलाइज करने, उनके ट्रांसपोर्टेशन आदि में अच्छा अनुभव रखते हैं। संभवत: इसी आधार पर एनटीसीए की तकनीकी समिति ने मध्यप्रदेश के नाम पर सहमति दी है। इसके अलावा पन्ना टाइगर रिजर्व को दोबारा बाघों से आबाद करके मध्यप्रदेश ने बाघों के संरक्षण और प्रबंधन में अपनी महारत साबित भी कर दी है। श्री सिंह बताते हैं कि मध्यप्रदेश के नाम पर सहमति का एक और बड़ा कारण यह है कि उड़ीसा का सतकोसिया टाइगर रिजर्व छत्तीसगढ़ के बस्तर से लगा हुआ है और पहले उसकी सीमाएं अविभाजित मध्यप्रदेश से लगी हुई थीं। भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र मध्यप्रदेश के सतपुड़ा-मेकल क्षेत्र का ही विस्तार है। इसलिए मध्यप्रदेश से उड़ीसा को उसी जीन समूह के बाघ मिल सकेंगे, जो वहां पहले रहे हैं।

लग सकता है 6 माह का समय: प्रदेश शासन ने बाघों के विस्थापन पर अपनी सहमति जरूर दे दी है, लेकिन अभी इस पर अमल होने में 2 से 6 माह तक का समय लग सकता है। पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) कार्यालय के अनुसार विस्थापन के लिए बाघों का चयन मुश्किल काम है। विभाग ऐसे युवा बाघों को उड़ीसा भेजने का इरादा रखता है, जो विभिन्न टाइगर रिजर्व में अपनी टैरेटरी बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली है। इस प्रक्रिया में समय लग सकता है। इसके अलावा भेजने के लिए बाघों को ट्रेंकुलाइज करने की प्रक्रिया में भी समय लग सकता है।

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