रिलायंस बंधुओं को जैव विविधता बोर्ड का नोटिस
क्यों मिला नोटिस - जैविक विविधता एक्ट 2002 के अनुसार जैविक संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने वाले को बोर्ड में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसके साथ ही उसे अपने सालाना राजस्व की दो फीसदी राशि जैव विविधता फंड में जमा करना होगा
यह हो सकती है सजा – जो कंपनियां ऐसा नहीं करेंगी उनके लिए एक्ट में तीन लाख रुपये या दो साल जुमार्ना या दोनों की सजा का प्रावधान है
कंपनियों का तर्क - सीबीएम और कोयला जैव संसाधन में नहीं आते हैं। इसके चलते यह एक्ट इन पर लागू नहीं होता है
प्रदेश की कई कंपनियों के बाद अब मध्य प्रदेश जैव विविधता बोर्ड ने रिलायंस बंधुओ को भी नोटिस जारी कर दिया है। यह नोटिस रिलायंस इंडस्ट्ीज के शहडोल स्थित कोल बेड मीथेन तथा रिलायंस पावर के सासन थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दिया गया है।
नोटिस में दोनों प्रोजेक्टों की कुल आय का दो फीसदी शुल्क बोर्ड में जमा करने का आदेश दिया गया है। जैविक विविधता एक्ट 2002 के अनुसार जैविक संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने वाले को बोर्ड में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है।
इसके साथ ही उसे अपने सालाना राजस्व की दो फीसदी राशि जैव विविधता फंड में जमा करना अनिवार्य है। इसी के अंतर्गत बोर्ड ने कोल बेड मीथेन और कोयले को जैव संसाधन मानते हुए दोनों प्रोजेक्टों को नोटिस जारी किया है। नोटिस में स्पष्ट किया गया है कि कंपनियों को बोर्ड में अपना पंजीकरण करवाकर दो फीसदी शुल्क जमा करना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
मध्य प्रदेश जैव विविधता बोर्ड ने प्रदेश की 200 कंपनियों को बोर्ड में पंजीकरण करवाने का नोटिस दिया है। इसमें खनन, टेक्सटाइल, सोया प्रोसेसिंग, डिस्टलरी, चीनी मिल सहित अन्य क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। नोटिस के अनुसार कंपनियों को बोर्ड में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। जो कंपनियां ऐसा नहीं करेंगी उनके लिए एक्ट में तीन लाख रुपये या दो साल जुमार्ना या दोनों की सजा का प्रावधान है।
एक्ट में इसे गैर जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है। रिलायंस इंडस्ट्ीज और रिलायंस पावर दोनों ही कंपनियों ने बोर्ड को भेजे अपने जवाब में कहा है कि सीबीएम और कोयला जैव संसाधन में नहीं आते हैं। इसके चलते यह एक्ट इन पर लागू नहीं होता है।
इन कंपनियों की ही तरह प्रदेश की सोया प्रोसेसिंग और टेक्सटाइल कंपनियों सहित दूसरे अन्य क्षेत्र की कंपनियां भी इसका विरोध कर रही हैं। उद्योग जगत की इस मामले में दो आपत्तियां हैं। पहला, बोर्ड ने कई ऐसी कंपनियों को नोटिस दिया है जो इस दायरे में आती ही नहीं हैं।
इसमें टेक्सटाइल मिलें, सोया प्लांट और चीनी मिलें शामिल हैं। दूसरी आपत्ति अपने सालाना कारोबार का दो फीसदी जैव विविधता फंड में जमा करने के प्रावधान को लेकर है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बोर्ड का मुख्य उद्देश्य जैविक विविधता की रक्षा करने का है।
सोयाबीन जैसी फसलों के उपयोग पर इसका कर लगाना उचित नहीं है। यह एक्ट की सही व्याख्या नहीं कही जाएगी। इसके अलावा टर्न ओवर का दो फीसदी कर लगाना किसी भी तरह तर्कसंगत और न्यायोचित नहीं है।