मित्तल की संपत्ति देख आयकर के भी खड़े हुए कान     जोनल आईजी की बैठक में डीजीपी के तीखे तेवर     मैदानी अमले और अफसरों को चेताया कंट्रोलर ने      ढाई इंक्रीमेंट फिर दिल्ली में गूंजेगा:2008 से वंचित हैं हजारों कर्मचारी     पुलिस मुखिया ने स्थानांतरित हुए पुलिसकर्मियों को किया कार्यमुक्त      पांच करोड़ के सर्वे को लेकर सीएम सचिवालय सक्रिय     महिला आयोग की अध्यक्ष को बर्खास्त करने की मांग     मनरेगा में पिछड़े प्रदेश के 33 जिले:आदिवासी बहुल क्षेत्रों की स्थिति चिंतनीय     जन कल्याण का अधिकांश बजट डकार रहे अधिकारी:लोकायुक्त मगरमच्छों पर हाथ क्यों नहीं डाल रहा     राष्ट्रीय प्रभारी-सह प्रभारी नहीं आते बैठकों में:नवजोत सिद्धू, हेमा मालिनी, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर के नाम कागजों में    ताजा खबरो के लिये पढ्ते रहें - dainiksandhyaprakash.com
 
 
  कुछ और खबरें

अहंकार का नाश

यह कथा उस समय की है जब लंका जाने के लिए भगवान श्रीराम ने सेतु निर्माण के पूर्व समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित किया था। वहाँ हनुमानजी को स्वयं पर अभिमान हो गया तब भगवान राम ने उनके अहम का नाश किया। यह कथा इस प्रकार है-
उन्होंने शुभ मुहूर्त में शिवलिंग लाने के लिए हनुमानजी को काशी भेजा।
यहाँ हनुमानजी को अभिमान हुआ और वहाँ भगवान राम ने उनके मन के भाव को जान लिया। भक्त के कल्याण के लिए भगवान सदैव तत्पर रहते हैं। हनुमान भी अहंकार के पाश में बंध गए थे। अत: भगवान राम ने उन पर कृपा करने का निश्चय कर उसी समय वारनराज सुग्रीव को बुलवाया और कहा- हे कपिश्रेष्ठ! शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। इसलिए मैं बालू का शिवलिंग बनाकर उसे यहाँ स्थापित कर देता हूँ।
तत्पश्चात उन्होंने सभी ऋषि-मुनियों से आज्ञा प्राप्त करके पूजा-अर्चनादि की और बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। फिर ऋषि-मुनि वहाँ से चले गए।
मार्ग में हनुमानजी से उनकी भेंट हुई। हनुमानजी ने पूछा कि वे कहाँ से पधार रहे हैं? उन्होंने सारी घटना बता दी। यह सुनकर हनुमानजी को क्रोध आ गया। वे पलक झपकते ही श्रीराम के समक्ष उपस्थिति हुए और रुष्ट स्वर में बोले- भगवन! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे काशी किसलिए भेजा था? आपने मेरा और मेरे भक्तिभाव का उपहास किया है।
श्रीराम मुस्कराते हुए बोले- पवनपुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था, इसलिए मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। मैं तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। मैंने जो शिवलिंग स्थापित किया है तुम उसे उखाड़ दो, मैं तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग को यहाँ स्थापित कर देता हूँ। हनुमान प्रसन्न होकर बोले- ठीक है भगवन! मैं अभी इस शिविलंग को उखाड़ फेंकता हूँ।
उन्होंने शिवलिंग को उखाडऩे का प्रयास किया, लेकिन पूरी शक्ति लगाकर भी वे उसे हिला तक न सके। तब उन्होंने उसे अपनी पूंछ से लपेटा और उखाडऩे का प्रयास किया। किंतु वह नहीं उखड़ा। अब हनुमान को स्वयं पर पश्चात्ताप होने लगा। उनका अहंकार चूर हो गया था और वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।
इस प्रकार हनुमान ने अहम का नाश हुआ। श्रीराम ने जहाँ बालू का शिवलिंग स्थापित किया था उसके उत्तर दिशा की ओर हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को स्थापित करते हुए कहा कि 'इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने के बाद मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करने पर ही भक्तजन पुण्य प्राप्त करेंगे। यह शिवलिंग आज भी रामेश्वरम में स्थापित है और भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ है।

 
  Go Back

  More News
12 फीसदी ही हुआ आवंटन
अहंकार का नाश
रेखा भारद्वाज का म्यूजिकल कॉन्सर्ट कल
नगर पालिका के निर्देश हवा में उड़ा रहे बिल्डर
मिलावटी दूध पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
फैसले को लेकर गंभीर हैं
    Previous Next
 

Home | About Us | Feedback | Contact Us | Disclaimer | Advertisement

© Copyright 2011-12, Dainik Sandhya Prakash | Website developed & hosted by - eWay Technologies