atikriman
नगर प्रतिनिधि . भोपाल
अतिक्रमण किस तरह और कैसा किया जाता है, इसका नमूना मैदा मिल के पास सुभाष नगर रेलवे फाटक के पास और सड़क किनारे सेकेंड हैंड सामान बेचने वालों को देखकर लगाया जा सकता है। जिला प्रशासन ने रेलवे फाटक के पास दो दर्जन से अधिक झुग्गियों को गेहूंखेड़ा में विस्थापित कर दिया था, परन्तु विस्थापित दोबारा सुभाष नगर फाटक के पास वाली जमीन पर बस गए हैं।  सुभाष नगर रेलवे फाटक के पास रोज नई झुग्गी बन रही है। जिला प्रशासन और रेलवे के अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं। नेशनल हाइवे होने के कारण इस सड़क पर 24 घंटे यातायात की आवाजाही लगी रहती है और ऐसे में सड़क किनारे झुग्गियां बन जाने से दुर्घटनाओं का अंदेशा बना रहता है। झुग्गियां बनने का सिलसिला रेलवे फाटक से शुरू होकर मैदा मिल तक पहुंच गया है। मैदा मिल के पास झुग्गी वालों ने कोलार परियोजना की पाइप लाइन में लीकेज कर लिया है और उससे पानी भरते रहते हं। अतिक्रमण का सिलसिला यहीं नहीं रूका है। जिला प्रशासन ने इन सब झुग्गी वालों को गेहूंखेड़ा में विस्थापित किया था, परन्तु विस्थापित दोबारा यहीं बस गए हैं। यह झुग्गी वाले पत्थर की मूर्तियां और ढोलक बनाने का काम करते हैं और पूरे परिवार के साथ रह रहे हैं। फाटक के सामने सेकेंड हैंड सामान बेचने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि मदन महाराज लॉ कालेज से शुरू होकर सड़क के दूसरी ओर दक्षिण दिशा में दो दर्जन से अधिक दुकानदारों का कब्जा है। ऐसा प्रतीत होता है कि सड़क किनारे पूरी दुकनदारों की लाइन बस गई है और आसपास दुकानदार अपनी दुकानें चला रहे हैं। मिनी बसों की भागमभाग और झुग्गी वालों के बच्चों के बीच आंख-मिचौनी का खेल रोज चलता रहता है। ऐसे में जिला प्रशासन, रेलवे और नगर निगम अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश में है। हालांकि अतिक्रमण को राजनेता और अफसरशाही भी बढ़ावा देते हैं, परन्तु सुभाष नगर के पास झुग्गियों के बनने से दुर्घटनाओं का अंदेशा हर दम बना रहता है। जिला प्रशासन क्या ऐसे में एक बार फिर इनको विस्थापित किए जाने तक के वक्त का इंतजार करने जा रहा है? साथ ही सेंकेंड हैंड सामान बेचने वालों को भी शायद विस्थापित करने की मंशा के साथ उन्हें अतिक्रमणकारी मानकर नहीं हटाना चाहता?