एक नगर में एक सन्यासी रहता था और वह एक धनवान किन्तु अहंकारी सेठ से परेशान था। जब सन्यासी भिक्षा लेने जाता तो वह उस सन्यासी को देखकर कोई न कोई ताना जरुर मारता था। सन्यासी उस सेठ के तानों से इतना परेशान हो गया और उसका कोई उपाय ढूंढने लगा और फिर उसने भिक्षा के लिए जाते समय जब सेठ ताना मारता तो वह मन मारकर हँसता और आगे बढ़ जाता। एक दिन सन्यासी ने अपने एक भक्त के सामने अपनी समस्या कही तो भक्त भी परेशान हो गया कि संत का अपमान करना तो बहुत बड़ा पाप है फिर सेठ रोजाना ही ऐसा करता है?
भक्त ने सोचना शुरू किया और विचार किया की सेठ के पास धन बहुत है और सन्यासी के पास कुछ भी नहीं है इसलिए सेठ सन्यासी पर हँसता है अगर किसी युक्ति से सेठ का धन नाश हो जाये तो फिर सेठ कभी एसा नहीं करेगा। भक्त ने सन्यासी को कहा कि कल जब आप भिक्षा लेने जाओ और उस समय सेठ ताना मारे तो उनके पास जाना और कहना की जब आप हँसते है तो आपके घर में गड़ा धन और आगे थोड़ा दूर चला जाता है। दुसरे दिन सन्यासी ने ठीक ऐसा ही किया तो सेठ के ललाट पर चिंता का भाव आ गया और वो सन्यासी को पूछने लगा कि धन को वापस करीब लाने के लिए आप कोई उपाय बताएं। तो सन्यासी ने कहा कि अपना सारा धन घर में एक खड्डा खोदकर उसमें डाल दो और ऊपर से मिटटी भर दो और फिर कभी उस धन को हाथ मत लगाना जब तक मैं न कहंू। सेठ ने ठीक ऐसा ही किया और अपना सारा धन गड्ढे में भर दिया अब उसके पास कुछ नहीं बचा था यहाँ तक कि खाने के लिए भी धन नहीं बचा तो वो फिर सन्यासी के पास गया और पूछा कि अब क्या करूं खाने के भी लाले पड़े है तो सन्यासी ने कहा कि कुछ ही दिन की बात है खूब मेहनत करो और अपना गुजारा करो और जब धन के पास धन आ जायेगा तो मैं बता दूंगा तो वह धन भी निकाल लेना। समय गुजरता गया और सेठ ने फिर से मेहनत करना शुरू कर दिया और मेहनत मजदूरी करके एक छोटा सा व्यापार कर लिया उसमें उसको बहुत सफलता मिली और वो फिर से वैसा ही धनवान बन गया। एक दिन जब सन्यासी उधर से निकला और उसने देखा की आज सेठ उसको देखकर हंस रहा है तो उसने इसका कारण पूछा तो सेठ ने कहा कि पुराना धन मुझे पिता की सम्पति से मिला था इसलिए वो मुझे रोजाना ताना बोलने के लिए मजबूर करता था और अब मेरे पास अपनी मेहनत का धन है इसलिए खुशी से हंसी और प्रसन्नता दे रहा है। सन्यासी ने कहा कि धन ही सब समस्या का कारण है जैसा धन होता है वैसा ही व्यक्ति का आचरण बन जाता है। मेहनती का धन विनम्रता और शिष्टाचार सिखाता है। अब सेठ ने सन्यासी का स्वागत किया और भिक्षा देकर ससम्मान विदा किया।