उज्जैन। महाकाल की पांचवी सवारी में रामघाट पर प्रवेश के लिए लोगों के बीच इतनी जद्दोजहद थी कि भीड़ ने संभागायुक्त डॉ.रविन्द्र पस्तौर,आईजी वी.मधुकुमार,डीआईजी राकेश गुप्ता एवं एआईजी विजय डावर को भी बेरीकेड्स पार करने में पसीना ला दिया। हालात यह रहे कि एक ओर भीड़ ने इन्हे आगे धकेला वहीं दूसरी ओर पुलिसकर्मियों, नगर सुरक्षा समिति सदस्यों द्वारा भीड़ को वापस पिछे की ओर धकेलने के चलते ये अधिकारी कश्मकश में दिखाई दिए। बड़ी मशक्कत के बाद ये पालकी पूजन स्थल की ओर रवाना हो सके।
नागरिक क्षेत्रों में यह दृश्य देखने के बाद जिला पुलिस बल की सुरक्षा व्यवस्था तथा भीड़ नियंत्रण को लेकर बनाई गई योजनाओं पर प्रश्नचिंह लग गए। हालात ऐसे थे कि कुछ लोग यह दृश्य आश्चर्य से देख रहे थे तो कुछ बतिया रहे थे कि देखो, जब पुलिस विभाग के आला अधिकारियों को व्यवस्था में कमी के चलते इतनी कश्मकश के साथ पूजा स्थल घाट पर जाने हेतु जूझना पड़ रहा है तो सडक़ों पर जो हालात आम आदमी के बने है, उसका क्या? व्यवस्था में कमी एक पक्ष हो सकता है लेकिन व्यवस्था में ऐसी कमी कि आला अधिकारी जिनके पास कानून व्यवस्था के सारे दायित्व हैं तथा जो हर परिस्थिति से निपटने के लिए मौके पर अंतिम आदेश देने की क्षमता रखते हैं, वे ही यदि इसप्रकार भीड़ के बीच फंस जाए तो भीड़ नियंत्रण को लेकर बनाई जानेवाली योजना की समीक्षा अधिकारियों को करना चाहिए। इसलिए भी क्योंकि 29 अगस्त को शाही सवारी है। इस दिन भीड़ के हालात क्या होंगे तथा हालात काबू में करने के लिए कौन सा नया प्लान पुलिस विभाग प्रशासन के साथ बैठकर बनाएग, विचारणीय है। रामघाट पर कितने लोग जाएं और उनका प्रोटोकाल क्या हो,इस दिशा में भी संभागायुक्त एवं आईजी को समीक्षा करके सख्ती से काम लेना होगा।
महाकाल की सवारी वाले दिन पुराने शहर में देवासगेट से लेकर चामुण्डा माता मंदिर चौराहा तक और गोपाल मंदिर तथा रामघाट की ओर जानेवाले हर मार्ग पर भीड़ दोपहर 12 बजे बाद से ही साये की तरह छा जाती है। भक्तों की इस भीड़ को नियंत्रित करने से पूर्व ही अनौपचारिक चर्चा में कतिपय पुलिस अधिकारी बतियाते हुए कह देते हैं कि गलियां छोटी,सडक़ें छोटी,जर्जर मकानवाला सवारी मार्ग और उस पर भी पुराने मकानों पर चढ़े क्षमता से अधिक लोग। पहले इनसे निपटने की योजना तो बना ले नगर निगम, फिर सडक़ पर उतरे लोगों को हम संभाल लेंगे। वे ईशारा करते हैं कि यदि किसी मकान का छज्जा भी टूटकर गिर गया और दो-चार सडक़ पर गिरे तो वे बच जाएंगे लेकिन सडक़ पर जमा भीड़ में से कितनों के हाथ पैर टूटेंगे, यह गिनती करना मुश्किल है। इसलिए भी क्योंकि ऐसे मौके पर अफवाह चलती है ओर भगदड़ होती है। वे यह कहते भी नहीं चूकते हैं कि सिंहस्थ में जब सवारी मार्ग चौड़ा नहीं हो सकता तो अब मुश्किल ही है। प्रश्रचिंह लगाते हैं कि लोग बढ़ते जा रहे हैं, सवारी मार्ग पर समाऐंगे तो उतने ही जितना पूर्व के वर्षो में समाए? ऐसे में अतिरिक्त भीड़ को डायवर्ट करें तो कहां? यह इतना गंभीर इश्यु है कि इस शाही सवारी में समीक्षा करके योजना बनाई गई तो आनेवाले वर्षो में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
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