प्रदेश में इस बार इंजीनियरिंग की सीटें काफी कम भरने के कारण कई कॉलेजों ने फीस आधी कर दी है। मध्यप्रदेश फीस नियंत्रण कमेटी ने निर्धारित फीस 60 हजार रुपए वार्षिक कर रखी है। आज की स्थिति में जहां कई स्कूलों की वार्षिक फीस 70 से 80 हजार रुपए है, वहीं कई कॉलेज 30 से 40 हजार रुपए में पढ़ाने को तैयार हो रहे हैं। कुछ इंजीनियरिंग कॉलेज छात्रवृत्ति की राशि (करीब 28-30 हजार) से भी कम में प्रवेश देने को मजबूर हैं।
काउंसलिंग के दूसरे दौर के बाद 70 हजार में से करीब 40 हजार सीटें खाली रह गई हैं। छात्रों के अभाव में कॉलेज बंद न हो जाए, इसके लिए कॉलेज संचालक कई तरह की जुगत लगा रहे हैं। तकनीकी शिक्षा विभाग से भी इस बारे में सहयोग मांगा गया है।
हालांकि प्रदेश सरकार इंजीनियरिंग और एमबीए की सीटें कम करना चाहती है इसलिए कई कॉलेजों को कहा गया है कि सीटें न भर पाने से इन्हें तकनीकी शिक्षा विभाग को लौटा दें। इस समय प्रदेश में 220 से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिनमें से करीब 100 की स्थिति ही ठीक है। छात्र न मिलने से कई कॉलेज पिछले साल कई ब्रांच बंद कर चुके हैं।
नुकसान से बचने के लिए दूसरे कोर्स
प्रदेश के 8 से 10 साल पुराने कॉलेजों की भी यह स्थिति है कि उन्हें बीई, एमबीए के साथ बीसीए और बीबीए जैसे कोर्स संचालित करना पड़ रहे हैं। इंदौर के कुछ कॉलेजों ने इस बार से इंजीनियरिंग के साथ अन्य स्नातक कोर्स शुरू किए हैं। इस कवायद से इंजीनियरिंग की खाली सीटों से होने वाले नुकसान को भरने की कोशिश की जा रही है। कई एजुकेशन गु्रप ने बीएड और नर्सिंग कोर्स भी शुरू कर दिए हैं। इन कोर्स में आसानी से 60 से 80 हजार वार्षिक फीस मिल रही है।
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