नई दिल्ली। भारत रत्न डॉ. एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी के जन्म शताब्दी अवसर पर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने 100 और 10 रुपए का स्मारक सिक्का जारी किया। इसके साथ ही उन्होंने ‘कुराई ओनराम ईल्लाई’ नामक प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया। इस अवसर पर संस्कृति मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) महेश शर्मा बतौर अतिथि उपस्थित रहे।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में मंगलवार को आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति एम. वंकैया नायडू ने ख्यातिलब्ध गायिका के स्मृति में सिक्के जारी किए। इस अवसर पर एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के व्यक्तित्व और संगीत यात्रा का जिक्र करते हुए नायडू ने कहा कि सुब्बुलक्ष्मी भारत रत्न प्राप्त करने वाली पहली महिला संगीतकार थीं। इसके साथ ही यूनाइटेड नेशन के असेंबली प्रस्तुति देने वाली पहली भारतीय संगीतकार भी थीं। नायडू ने कहा कि यहां सभी सुब्बुलक्ष्मी और उनकी संगीत साधना को याद करने के लिए और उसको सम्मान देने के लिए उपस्थित हैं। ये हमारी भारतीय संस्कृति और पद्धति है कि जो समाज, देश को अपना बेहतर प्रदान करता है उसको हम पुरस्कृत, सम्मानित करते हैं। इसका मूल उद्देश्य होता है कि उस व्यक्ति से पीढ़ियां प्रेरणा लें और अनुसरण करें ।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारा दायित्व है कि अपने पूर्वजों के कृतित्व और उनके व्यक्तित्व को याद रखें, अपनी समृद्ध संस्कृति को याद रखते हुए उसको बढ़ावा दें। अगर हम सब ऐसा करते हैं तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति, समृद्ध धरोहर, सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों, संस्कारों को संजोकर पीढ़ियों के लिए रखना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि संगीत कोई कोई सीमा और कोई धर्म नहीं होता, यह जोड़ने का काम करता है। भारतीय संगीत की जड़ें आदिकाल से ही काफी गहरी हैं और यह हमारी अमूल्य धरोहर हैं।
इससे पूर्व केंद्रीय संस्कृति मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ महेश शर्मा ने कहा कि भारत रत्न डॉ. एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी गायक नहीं बल्कि वह गायिकी का संविधान और इंसाइक्लोपीडिय़ा थीं। उन्होंने प्रेरणा की ऐसी मिसाल कायम की है कि वह पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। उन्होंने एक वाक्या का जिक्र करते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने एक बार सुब्बुलक्ष्मी से आग्रह किया कि वे ‘प्रभु तुम हरो जन की पीर’भजन को अपनी आवाज में गाएं। इस पर सुब्बुलक्ष्मी ने कहा कि वह गीत के भाव को नहीं समझ पा रहीं, ऐसे में न्याय कैसे कर पाएंगी। किंतु उन्होंने अपने गुरु से संपर्क किया और इस भजन को रिकार्ड कर गांधी जी के पास भेजा। जब इस भजन का आकाशवाणी पर प्रसारण हुआ तब सुब्बुलक्ष्मी इसको सुन रही थीं और सुनते-सुनते बेहोश हो गईं। डॉ महेश शर्मा ने कहा कि ये उस गीत का और उनका भाव था।
उल्लेखनीय है कि भारत रत्न डॉ एम एस सुब्बुलक्ष्मी के जन्म शताब्दी के समापन समारोह का जश्न मनाने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा (आईजीएनसीए) कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें 15 से 22 सितम्बर तक आईजीएनसीए के प्रांगण में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। जिनमें लोक गायन, लोक वादन, पुस्तक मेले का आयोजन, लघु फिल्में, जैसे आयोजन शामिल हैं।
डॉ. सुब्बुलक्ष्मी कर्नाटक की गायिका थीं| उनका जन्म मद्रास प्रेसीडेंसी के तहत मदुरई में 1916 को हुआ था। वे भारत रत्न से सम्मानित होने वाली वे पहली संगीतकार थीं। उन्हें दक्षिण की लता मंगेशकर भी कहा जाता है। वे रमन मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाली भी पहली भारतीय संगीतकार हैं। इस पुरस्कार को एशिया का नोबल पुरस्कार भी माना जाता है। सुब्बुलक्ष्मी के जन्मशताब्दी वर्ष पर पिछले 16 सितम्बर 2016 से ही अलग- अलग शहरों में कार्यक्रमों का आयोजन चल रहा है।



