आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में कब किसे ह्दय संबंधी रोग घेर लें, कुछ कहा नहीं जा सकता । काम का दवाब और जीवन शैली में आए परिर्वन का यह परिणाम है कि इन दिनों कब किसे कहां ह्दय घात आ जाए कुछ पता नहीं । ऐसे में यदि अपने ह्दय को दुरुस्त रखना है तो कुछ आयुर्वेद उपाय अपनाकर स्वयं के जीवन को लम्बे समय तक ह्दय की बिमारी से दूर रखा जा सकता है । अर्जुन-छाल ऐसा ही उपाय है जिसका कि उपयोग नियमित तौर पर करते हुए अपने कमजोर ह्दय को भी ताकत दी जा सकती है । डॉ. सुरेश चंद्र का तो यही कहना है ।
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय चन्द्रावल (लखनऊ) के निदेशक आयुर्वेद डॉ. सुरेश चन्द्र ने बताया कि अर्जुन की छाल से बने काढे का सेवन हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभप्रद है। यह हृदय धमनी काठिन्य (कोरोनरी हार्ट डिजीज) को ठीक करने के साथ-साथ यकृत विकार तथा हड्डियों को मजबूत करने में भी लाभप्रद साबित हुई है। ऐसे ही वे एक अन्य पौधे हरसिंगार के बारे में जानकारी देते हुए कहते हैं कि इसकी 11 पत्तियों का काढा बनाकर प्रतिदिन पिया जाय तो गृधसी (सियाटिका), जोड़ों के दर्द आदि वातव्याधियों को दूर करता है।
डॉ. सुरेश चंद्र के अलावा अन्य आयुर्वेदिक चिकित्सकों यहां तक कि होम्योपैथी एवं एलोपैथी के डॉक्टर्स भी यह मानते हैं कि अर्जुन छाल एक अचूक दवा के रूप में ह्दय रोगियों के लिए रामवाण सिद्ध हुई है । इस संबंध में अभी तक हुए अनुसंधान में यही कह रहे हैं । सच, हमारे आसपास लगे पौधे हमारे लिए कितने उपयोगी है यह इससे समझा जा सकता है ।
देखाजाए तो स्वास्थ्य संरक्षण की इस प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति ‘आयुर्वेद‘ को पुनर्जीवित करने हेतु आवश्यक है कि ऐसे औषधीय पौंधो का रोपण किया जाए जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हर दृष्टि से लाभप्रद हैं। डॉ. शिवशंकर त्रिपाठी भी डॉ. सुरेश चन्द्र से सहमत नजर आते हैं, वे एक अन्य पौधे कचनार की छाल के बारे में बताते हैं कि इससे शरीर की ग्रन्थियों में होने वाली सूजन को दूर करने तथा अर्बुद (टयूमर) को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता है । वहीं वे यह भी बताते हैं कि वासा (अडूसा) की पत्तियों एवं फूलों का काढ़ा किसी भी प्रकार की खांसी को दूर करने में अत्यंत लाभकारी है।