आओ ज्योतिष सीखे-4
इस सप्ताह हम जानेंगे की कुण्डली में ग्रह एवं राशि इत्यादि को कैसे दर्शाया जाता है। साथ ही लग्न एवं अन्य भावों के बारे में भी जानेंगे। कुण्डली को जन्म समय के ग्रहों की स्थिति की तस्वीर कहा जा सकता है। कुण्डली को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि जन्म समय में विभिन्न ग्रह आकाश में कहां स्थित थे। भारत में विभिन्न प्रान्तों में कुण्डली को चित्रित करने का अलग अलग तरीका है। मुख्यत: कुण्डली को उत्तर भारत, दक्षिण भारत या बंगाल में अलग अलग तरीके से दिखाया जाता है। हम सिर्फ उत्तर भारतीय तरीके की चर्चा करेंगे।
कुण्डली से ग्रहों की राशि में स्थिति एवं ग्रहों की भावों में स्थिति पता चलती है। ग्रह एवं राशि की चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं और भाव की चर्चा हम आगे करेंगे। उत्तर भारत की कुण्डली में लग्न राशि पहले स्थान में लिखी जाती है तथा फिर दाएं से बाएं राशियों की संख्या को स्थापित कर लेते हैं। अर्थात राशि स्थापना (anti-clock wise) होती हैं तथा राशि का सूचक अंक ही अनिवार्य रूप से स्थानों में भरा जाता है। एक उदाहरण कुण्डली से इसे समझते हैं।
भाव
थोडी देर के लिए सारे अंको और ग्रहों के नाम भूल जाते हैं। हमें कुण्डली में बारह खाने दिखेंगे, जिसमें से आठ त्रिकोणाकार एवं चार आयताकार हैं। चार आयतों में से सबसे ऊपर वाला आयत लग्न या प्रथम भाव कहलाता है। उदाहरण कुण्डली में इसमें रंग भरा गया है। लग्न की स्थिति कुण्डली में सदैव निश्चित है। लग्न से एन्टी क्लॉक वाइज जब गिनना शुरू करें जो अगला खाना द्वितीय भाव कहलाजा है। उससे अगला खाना तृतीय भाव कहलाता है और इसी तरह आगे की गिनती करते हैं। साधारण बोलचाल में भाव को घर या खाना भी कह देते हैं। अग्रेजी में भाव को हाउस (house) एवं लग्न को असेन्डेन्ट (ascendant) कहते हैं।
भावेश
कुण्डली में जो अंक लिखे हैं वो राशि बताते हैं। उदाहरण कुण्डली में लग्न के अन्दर 11 नम्बर लिखा है अत: कहा जा सकता है की लग्न या प्रथम भाव में ग्यारह अर्थात कुम्भ राशि पड़ी है। इसी तरह द्वितीय भाव में बारहवीं अर्थात मीन राशि पड़ी है। हम पहले से ही जानते हैं कि कुम्भ का स्वामी ग्रह शनि एवं मीन का स्वामी ग्रह गुरु है। अत: ज्योतिषीय भाषा में हम कहेंगे कि प्रभम भाव का स्वामी शनि है (क्योंकि पहले घर में 11 लिखा हुआ है)। भाव के स्वामी को भावेश भी कहते हैं।
प्रथम भाव के स्वामी को प्रथमेश या लग्नेश भी कहते हैं। इसी प्रकार द्वितीय भाव के स्वामी को द्वितीयेश, तृतीय भाव के स्वामी को तृतीयेश इत्यादि कहते हैं।
उदाहरण कुण्डली में उपर वाले आयत से एन्टी क्लॉक वाइज गिने तो शुक्र एवं राहु वाले खाने तक पहुंचने तक हम पांच गिन लेंगे। अत: हम कहेंगे की राहु एवं शुक्र पांचवे भाव में स्थित हैं। इसी प्रकार चंद्र एवं मंगल छठे, शनि – सूर्य-बुध सातवें, और गुरु-केतु ग्यारवें भाव में स्थित हैं। यही ग्रहो की भाव स्थिति है।
ग्रहों की राशिगत स्थिति
ग्रहों की राशिगत स्थिति जानना आसान है। जिस ग्रह के खाने में जो अंक लिखा होता है, वही उसकी राशिगत स्थिति होती है। उदाहरण कुण्डली में शुक्र एवं राहु के आगे 3 लिखा है अत: शुक्र एवं राहु 3 अर्थात मिथुन राशि में स्थित हैं। इसी प्रकार च्रद्र एवं मंगल के आगे चार लिखा है अत: वे कर्क राशि में स्थित हैं जो कि राशिचक्र की चौथी राशि है।
याद रखें कि ग्रह की भावगत स्थिति एवं राशिगत स्थिति दो अलग अलग चीजें हैं। इन्हें लेकर कोई कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए।