ढाका। बांग्लादेश और म्यामां ने दो महीने के भीतर रोहिंग्या शरणार्थियों की वतन वापसी पर ध्यान देने के लिए एक 30 सदस्यीय संयुक्त समिति का गठन किया। हालांकि मानवाधिकार समूहों ने आगाह किया कि बौद्ध बहुल देश में लौटने पर उनकी सुरक्षा का आश्वासन नहीं दिया गया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए एच महमूद अली ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘अब हम अपने काम को लेकर अगला कदम उठाएंगे।’’ बांग्लादेश विदेश विभाग ने एक बयान में कहा कि कार्य समूह शरणार्थियों की वापसी की व्यवस्थाएं करेगा जिनमें सत्यापन, समय सारणी, परिवहन एवं रसद सामग्री संबंधी व्यवस्थाएं आदि शामिल हैं।
विभाग ने कहा कि कार्य समूह ‘‘सुनिश्चित करेगा कि दो महीने में वतन वापसी की प्रक्रिया शुरू हो जाए।’’ संयुक्त कार्य समूह ‘‘वतन वापसी के विभिन्न चरणों में यूएनएचसीआर और संयुक्त राष्ट्र की दूसरी अधिकृत एजेंसियों तथा रुचि रखने वाले अंतरराष्ट्रीय भागीदारों की मदद लेगा।’’ यह बयान ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ द्वारा उपग्रह तस्वीरों का विश्लेषण जारी करने के एक दिन बाद अया है। इस मानवाधिकार समूह ने उपग्रह की तस्वीरों के हवाले से कहा है कि उनके देश वापस लौटने को लेकर बांग्लादेश के साथ समझौते पर दस्तख्त होने के कुछ ही दिनों के अंदर म्यांमा की सेना ने रोहिंग्या समुदाय के दर्जनों घरों को जला दिया है।
मानवाधिकार संगठन ने कहा है कि समझौता एक दिखावटी कदम है और चेताया है कि इसमें रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों के म्यांमा के संघर्ष प्रभावित रखाइन राज्य में लौटने पर उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं दी गई है। अगस्त में राज्यविहीन अल्पसंख्यक समुदाय के अनुमानित 6,55,000 सदस्य शरणार्थी के तौर पर बांग्लादेश आ गए थे। रखाइन में म्यांमा सेना की कार्रवाई को अमेरिका एवं संयुक्त राष्ट्र ने जातीय सफाया बताया है।