उज्जैन मंदिर में ‘RO’ के सिर्फ आधा लीटर जल से कर सकेंगे अभिषेक
By dsp bpl On 28 Oct, 2017 At 12:28 PM | Categorized As मध्यप्रदेश | With 0 Comments

उच्चतम न्यायालय ने उज्जैन के प्राचीन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए ‘रिवर्स ऑस्मोसिस’ (आरओ) के सिर्फ आधा लीटर जल का उपयोग करने सहित पूजा अर्चना के लिए नये नियमों को शुक्रवार को अपनी मंजूरी दे दी। यह प्राचीन मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। मंजूर किए गए नये नियमों के मुताबिक श्रद्धालुओं को जलाभिषेक के लिए एक उपयुक्त बर्तन में प्रति व्यक्ति निर्धारित आधा लीटर जल ही चढ़ाने की इजाजत होगी।

शीर्ष न्यायालय ने मंदिर प्रबंध समिति द्वारा पारित आठ सूत्री प्रस्ताव को मंजूरी दी। यह प्रस्ताव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षेण (जीएसआई) के अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के अनुरूप है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की सदस्यता वाली एक पीठ ने कहा कि लिंगम (शिव लिंग) को संरक्षित रखने के लिए विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लागू किए जाने की जरूरत है।

न्यायालय ने कहा कि जलाभिषेक सिंहस्थ 2016 के दौरान लगाए गए आरओ मशीन से लिए गए जल से किया जाएगा, जिसके लिए गर्भगृह के पास एक कनेक्शन मुहैया किया जाएगा। नये प्रस्ताव में कहा गया है कि अभी प्रसिद्ध भष्म आरती (पवित्र राख के साथ की जाने वाली विशेष प्रार्थना) के दौरान आधा लिंगम वस्त्र से ढका होता है। अब से प्रार्थना के दौरान यह सूखे सूती वस्त्र से पूरी तरह से ढका होगा।

अभिषेक के लिए भी प्रतिबंध लगाए गए हैं और प्रति श्रद्धालु सिर्फ सवा लीटर दूध या पंचामृत की इजाजत होगी। हर दिन शाम पांच बजे जलाभिषेक पूरा होने के बाद लिंगम को साफ किया जाएगा और उस पर मौजूद जल की मात्रा को सूखाया जाएगा। इसके बाद सिर्फ सूखी पूजा की इजाजत होगी। शिवलिंग पर बूरा रगड़ने की परंपरा पूरी तरह से प्रतिबंधित है और इसके बजाय खंडसारी को बढ़ावा दिया जाएगा। उच्चतम न्यायालय द्वारा मंजूर किए गए प्रस्ताव के मुताबिक बेल पत्र और पुष्प का उपयोग शिवलिंग के ऊपरी हिस्से पर होगा, ताकि शिवलिंग को प्राकृतिक वायु मिलने में कोई बाधा नहीं आए।

हालांकि, पीठ ने एसएसआई, जीएसआई और अन्य पक्षों को निर्देश दिया कि वे आपत्तियां और सुझाव 15 दिनों के अंदर दर्ज करा सकते हैं, यदि ऐसा कोई हो। पीठ ने कहा, ‘‘हमने सिर्फ लिंगम के संरक्षण के लिए इस याचिका पर विचार किया।’’ शीर्ष न्यायालय ने एसएसआई, जीएसआई और अन्य अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति का 25 अगस्त को गठन किया था। कमेटी ने एक व्यापक रिपोर्ट सौंपी थी जिस पर न्यायालय ने विचार किया।

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